चलो एक किस्सा लिखते हैं
तुम अपना लिखो, हम अपना लिखते हैं
अंदाज़ को नज़र अंदाज़ कर, नज़र तराशते हैं
तुम अपनी तराशो, हम अपनी तराशते हैं
बड़ा लम्बा हिसाब है, इस किताब का
तुम अपना निकालो, हम अपना निकालते हैं
सुर्ख स्याही से लिखा है
जो अनकहा था, वो भी
हैज़ारों ख्वाहिशों का सफर है
कुछ अधूरी, कुछ पूरी
कुछ यादें हैं, छुई अनछुई
बेवजह तो कुछ भी नहीं था
तुम अपनी ढूंढो, हम अपनी ढूंढते हैं
रिश्तों की हिस्सेदारी में बटे हैं सब
मेरे हिस्से में तुम थे, तुम्हारे हिस्से में था मैं भी
मेरे किस्से में तुम थे, तुम्हारे किस्से में था मैं भी
सोनाली मोहन